Friday, October 14, 2011

हँसमुखजी दुखी हो गए असलियत में रोने लगे (हास्य कविता)


हँसमुखजी के
निरंतर हँसने से सब मित्र,
रिश्तेदार विस्मित थे
हमेशा हँसने का कारण
पूछते थे
सवालों से परेशान हँसमुखजी
एक दिन बिना बात के
बुक्का फाड़ कर रोने लगे
मित्र,रिश्तेदार परेशान हो गए
सुबह से शाम उनसे कारण
पूछते रहे
और तो और शहर में
उनका रोना
चर्चा का विषय हो गया
घर आने वालों का
तांता लग गया
हर शख्श रोने का
कारण पूछने लगा
सवालों की बौछार से
हँसमुखजी परेशान हो गए
हाथ जोड़ कर
कोई कारण नहीं है ,
बार बार कहने लगे
पर कोई सुनने ,
मानने को तैयार ना था
पानी सर से गुजर गया
हँसमुखजी दुखी हो गए
असलियत में रोने लगे
साथ ही चिल्ला कर कहने लगे
मेरी बात पर विश्वास करो
पहले मज़ाक में हँस रहा था
अब सवालों से
दुखी हो कर रो रहा हूँ
और सवाल करोगे तो
फिर कभी नहीं हँस पाऊंगा
नाम भी बदल कर 
हँसमुखजी की जगह 
रोता मुख रख लूंगा
14-10-2011
1647-55-10-11

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