Thursday, February 2, 2012

कुछ शरमा गयी,कुछ घबरा गयी (हास्य कविता)

वो खडा था गली
के नुक्कड़ पर
उसको  देखा तो
कुछ शरमा गयी
कुछ घबरा गयी
दिल की धड़कन
बढ़ने लगी
चेहरे पर लाली
छाने लगी
सहमती हुयी बगल से
निकलने लगी
कनखियों से देखा
तो वो नहीं
उसकी सूरत से
मिलती जुलती सूरत
उसके भाई की थी
02-02-2012
97-07-02-12

1 comment:

  1. BHAI NIRANTAR JI APKA BHI KOI JABAB NAHI .....ACHHA HUA APKE KADAM KUCHH AUR NAHI BADHE NAHI TO AAGE KA HAL TO AP SAMJH HI SAKATE HAIN......AP NE TO THAHAKA LAGANE PR MAJBOOR KAR DIYA ..LAJBAB PRASTUTI KE LIYE SADAR ABHAR .....HAN MERE NAYE POST PR AMANTRAN SWEEKAREN .

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