Tuesday, April 17, 2012

"निरंतर" की कलम से.....: हास्य कविता-निरंतर फक्कड़ रहा हूँ , फक्कड़ ही रह ल...

"निरंतर" की कलम से.....: हास्य कविता-निरंतर फक्कड़ रहा हूँ , फक्कड़ ही रह ल...: चार मकान , चार गाडी खरीद लूं देश विदेश की सैर कर लूं कुछ सोना , चांदी खरीद लूं धनवानों में गिनती होगी आगे पीछे भीड़ होगी मेरी भी पूछ होगी छा...

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