Sunday, October 30, 2011

किस बात से डरते हैं आप(हास्य कविता )


किस बात से डरते हैं आप

क्यों मन में चोर पालते हैं
क्यों खुल कर बोलते नहीं आप

क्यों आँख मिचोली खेलते हैं
निरंतर इच्छाएं दबाते हैं आप

खुद को तकलीफ देते हैं
ज़माने से घबराते हैं आप

अगर सच्चे मन से चाहते हैं
क्यों हकीकत छिपाते हैं आप

कोई पाप नहीं करते हैं
रिश्ते को इज्ज़त बख्शें आप

निरंतर मन में बोझ ना पालें
अब हल्का कर दीजिये आप

ईमानदारी से सब को बता दें
हम को भाई मानते हैं आप
30-10-2011
1725-132-10-11

Friday, October 21, 2011

सामने वाले घर में रहती थी ( हास्य कविता)



 सामने
वाले घर में रहती थी
देर रात उनके कमरे की
बत्ती जल रही थी
दूर से मेरे मन में
बेचैनी पैदा कर रही थी
उन्हें देखने की इच्छा
हो रही थी
एक नज़र मेरे कमरे की
तरफ देख लें
नज़रों से नज़रें मिला लें
उम्मीद में मैंने भी
कमरे की खिड़की खोल दी
निगाहें खिड़की पर लगी थी
नींद उड़ गयी
आँख़ें सुर्ख लाल हो गयी
रात गुजरती गयी
उम्मीद कम नहीं हुयी
कब भोर आयी खबर
भी ना हुयी
आज की रात भी सूनी रही
मन की परेशानी
कम ना हुयी
किसी तरह उन्हें खबर
भिजवायी
रात की कहानी उन्हें
बतायी
जवाब में छोटी से चिट्ठी
मुझे भिजवायी
मेरे ख़त की जम कर
हँसी उडायी
इस से बड़ी बेवकूफी
उन्होंने
कभी नहीं देखी थी
बत्ती जला कर सोयी थी
क्यूं तुमने अपनी नींद
गंवायी ?
क्यूं दिल की चाहत
पहले ना बतायी ?
अब मंगनी हो चुकी है
अगले महीने शादी है
निरंतर
जलती बत्तियों से
परेशान ना हुआ करो
हकीकत की दुनिया में
जिया करो
मोहब्बत करने से पहले
सामने वाले का दिल भी
टटोल लिया करो
21-10-2011
1682-89-10-11

Saturday, October 15, 2011

आज करवा चौथ हैं (हास्य कविता )


आज करवा चौथ हैं
तुम्हारी
लम्बी आयु के लिए
मेरा व्रत है
पत्नी ने पती को सवेरे ही
हुक्म सुना दिया
आज तुम्हें घर पर ही
रहना है
मेरे लिए हर घंटे चाय
खुद का खाना खुद
बनाना है
घर की सफायी तो
करनी ही है
पूजा का सामान भी
लाना है
पती सुनता रहा
फिर डरते डरते बोला
आज ज़रूरी काम है
कुछ घंटों के लिए दफ्तर
जाना है
पत्नी बिफर गयी
चिल्ला कर बोली
खबरदार जो जुबान खोली
ज़िंदा रहना है तो घर में
रहना पडेगा
निरंतर मेरा कहना
मानना होगा
सर दुखे तो दबाना होगा
कल से मेरा भी खाना
बनाना पडेगा
चपड़ चूँ करी तो थप्पड़
खाना पडेगा
मेरा व्रत तो टूटेगा
माफी नहीं मांगोगे
जब तक तुम्हें भी भूखा
रहना पडेगा 
15-10-2011
1654-62-10-11

Friday, October 14, 2011

हँसमुखजी दुखी हो गए असलियत में रोने लगे (हास्य कविता)


हँसमुखजी के
निरंतर हँसने से सब मित्र,
रिश्तेदार विस्मित थे
हमेशा हँसने का कारण
पूछते थे
सवालों से परेशान हँसमुखजी
एक दिन बिना बात के
बुक्का फाड़ कर रोने लगे
मित्र,रिश्तेदार परेशान हो गए
सुबह से शाम उनसे कारण
पूछते रहे
और तो और शहर में
उनका रोना
चर्चा का विषय हो गया
घर आने वालों का
तांता लग गया
हर शख्श रोने का
कारण पूछने लगा
सवालों की बौछार से
हँसमुखजी परेशान हो गए
हाथ जोड़ कर
कोई कारण नहीं है ,
बार बार कहने लगे
पर कोई सुनने ,
मानने को तैयार ना था
पानी सर से गुजर गया
हँसमुखजी दुखी हो गए
असलियत में रोने लगे
साथ ही चिल्ला कर कहने लगे
मेरी बात पर विश्वास करो
पहले मज़ाक में हँस रहा था
अब सवालों से
दुखी हो कर रो रहा हूँ
और सवाल करोगे तो
फिर कभी नहीं हँस पाऊंगा
नाम भी बदल कर 
हँसमुखजी की जगह 
रोता मुख रख लूंगा
14-10-2011
1647-55-10-11

Saturday, October 1, 2011

चैटिंग का स्टिंग ऑप्रेशन (हास्य कविता)

हँसमुखजी
चैटिंग के किस्से सुन कर
फिर से
इश्किया मूड में आ गए
६० की उम्र में २५ का
दिखने की चाहत में
ब्यूटी पार्लर जा कर
ज़र्ज़र चेहरे का जीर्णोद्धार
करवा आये
नया विग लगवाया
स्टूडियो में नया फोटो
खिचवाया
फिर उत्साह से इन्टरनेट
पर लगा दिया
पहले ही दिन एक कन्या का
प्रस्ताव आया
घंटों बतियाने लगे
हंसी मज़ाक ,दिल की बातों
का आदान प्रदान होने लगा
भावावेश में
हँसमुखजी ने कन्या को
विवाह का प्रस्ताव दे दिया
कन्या बिफर गयी
फ़ौरन बोली हँसमुखजी मैंने
आपको पहचान लिया
आपके मकान से
आंठ्वे मकान में रहती हूँ
उसी ब्यूटी पार्लर में
काम करती हूँ
जहाँ आपने पुरानी
इमारत का
रंग रोशन करवाया
मैं उस दिन ही समझ गयी थी
दाल में कुछ काला है
इसीलिए आप की चैटिंग का
स्टिंग ऑप्रेशन कर डाला
अब मान जाओ
मुझे छोटी बहन समझ कर
राखी बंध वालो
नहीं तो ज़र्ज़र इमारत को
ध्वस्त कर दूंगी
खंडहर को भाई की अर्थी
समझ लूंगी
किसी टूटे खम्बे को ही
राखी बाँध दूंगी
आपको बहन के प्यार से
नवाजूंगी
30-09-2011
1591-162-09-11