Wednesday, November 30, 2011

जिसके जलन होती उसका दर्द वही जानता(हास्य कविता)


राह चलते हँसमुखजी को
आँसू बहाते
एक महिला दिख गयी
उनसे  देखा ना गया
उसके पास जाकर दिलासा
देते हुए कहने लगे
हिम्मत और सब्र से काम लो
तुम्हारे दुःख दूर हो जायेंगे
रोते ,भन्नाते हुए  महिला बोली
क्या ख़ाक हिम्मत रखूँ
एक हफ्ते में पांचवी बार
आँखों में मिर्ची गिर गयी
जलन के मारे
मेरी जान निकल रही है
तुम्हें सब्र की पडी है
उसने हँसमुखजी
के आँख में मिर्ची झोंक दी
अब तुम सब्र से काम लेना
हिम्मत से
दर्द और जलन सहना
कहते  हुए
उनका बैग लेकर भाग गयी
हँसमुखजी
अब किसी भी महिला को
रोते देखते हैं
उसे दिलासा ज़रूर देते हैं
पर साथ में कहते हैं
निरंतर हिम्मत और सब्र से
जलन कम नहीं होती
जिसके जलन होती
उसका दर्द वही जानता
30-11-2011
1832-97-11-11

Sunday, November 27, 2011

हँसमुखजी का पड़ोसी से झगडा हो गया(हास्य कविता)


पतले दुबले हँसमुखजी का
मोटे गैंडे जैसे पड़ोसी से
झगडा हो गया
पड़ोसी ने उन्हें उड़ता हुआ
तिनका कह दिया
हँसमुखजी का
चेहरा लाल हो गया
उनका पुरुषत्व जाग गया
क्रोध में उन्होंने पड़ोसी को
धरती का बोझ करार दे दिया
पड़ोसी की पत्नी ने सुना,तो
वो भी मैदान में कूद पडी
पती को यथा शरीर तथा नाम
देने से बिफर गयी
पड़ोसी के बोलने के पहले ही
उसने हंसमुखजी को जवाब दे दिया
धरती के बोझ होगे तुम
हँसमुखजी की पत्नी कम नहीं थी
कोई महिला
उसके पती को कुछ कह दे
बर्दाश्त नहीं हुआ
उसने लपक कर पड़ोसी को
उड़ता हुआ तिनका कह  दिया
बस हाहाकार मच गया
पड़ोसन बोली ठीक से बात करो
इतने मच्छर जैसे भी नहीं हैं कि
इन्हें उड़ता हुआ तिनका कहो
बात बढ़ती गयी
दूसरा  पड़ोसी सारी बात
सुन रहा था
उससे रहा नहीं गया
वो बीच में कूदा,
दोनों को शांत किया
फिर हँसमुखजी की पत्नी से बोला
आप इन्हें उड़ता हुआ तिनका
मत कहिये ,
पड़ोसी की पत्नी को कहा
आप हँसमुखजी को
धरती का बोझ नहीं कहिये
दोनों में राजीनामा कराया
दोनों ने हाथ मिलाया
पहले रहते थे
निरंतर वैसे ही रहने लगे
लोग हँसमुखजी  को
उड़ता हुआ तिनका
पड़ोसी को
धरती का बोझ
कहने लगे
27-11-2011
1822-87-11-11

Sunday, November 20, 2011

हँसमुखजी का ज्योतिष प्रेम (हास्य कविता)


हँसमुखजी
ज्योतिष के बारे में
कुछ नहीं जानते थे
पहली बार
ज्योतिषी के पास 
जन्म पत्री दिखाने गए
जन्मपत्री देखते ही
ज्योतिषी बोला
आपकी मंगल बहुत भारी है
कन्या के घर में नीच का
बुद्ध बैठा है
चंद्रमा आठवे घर में
सूर्य के साथ है
शनी उच्च का
सातवे घर में अच्छा है
हँसमुखजी बौखलाए
अपने को रोक नहीं सके
फ़ौरन बोले सब बकवास है
मंगल मेरा बेटा है
खिला खिला कर 
परेशान हो गए
वज़न बढ़ने का
नाम ही नहीं लेता
भारी कैसे हो गया
कन्या के पती का नाम
श्याम है
नीच बुद्ध राम वहाँ क्या
कर रहा है
मुझे बेवकूफ समझते हो
आठवे घर में शर्माजी
रहते हैं
सूर्य ,चंद्रमा आकाश में
रहते हैं
सूर्य दिन को निकलता है
चंद्रमा रात को 
पड़ोसी का नाम शनिशचर है
एक नंबर का पाजी है
वो उच्च का कैसे हो गया
तुम खाली पीली नाटक
कर रहे हो
निरंतर बेवकूफ बना रहे हो
कहते कहते
ज्योतिषी पर टूट पड़े
क्रोध के राहु केतु ने 
ज्योतिषी के 
हाथ पैर तोड़ कर उसका 
वर्तमान और भविष्य
दोनों खराब कर दिए
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
हास्य कविता, हँसमुखजी,ज्योतिष,ज्योतिषी 

20-11-2011
1804-75-11-11

Monday, November 14, 2011

वो शादी शुदा थी ,दोनों बच्चों की माँ थी


 दर्द बढ़ने लगा
उम्मीद जाने लगी
हसरतों की अर्थी
सजने लगी
उनसे मिलने की
ख्वाइश
दम तोड़ने लगी
तभी वो आ गयी
दोनों बच्चों के साथ थी
हमारी सांसें फिर से
चलने लगी
पूछने पर कहने लगी
वो शादी शुदा थी
दोनों बच्चों की 
माँ थी  
14-11-2011
1790-61-11-11

Thursday, November 10, 2011

पहले क्यूं नहीं मिले आपसे ?


निरंतर
साथ जीने मरने की
कसमें खाने वाले
कुछ इस कदर
खफा हुए हमसे
शक्ल -ओ-सूरत तक
भूल गए
मिले तो कहने लगे
भाई जान
बड़ा अफ़सोस है हमें
पहले क्यूं नहीं मिले
आपसे ? 
10-11-2011
1767-35-11-11

हँसमुखजी के बाप का नाम


हँसमुखजी से
उनके बाप का नाम
 क्या पूछा
वो तुनक कर बोले
मुझे ही पता नहीं
तुम्हें क्या ख़ाक बताऊँ
 बरसों से निरंतर 
कई लोगों में इस बात पर
झगडा हो रहा है
हर शख्श मुझे अपना
बेटा कहता है
झगडा सुलझते ही
तुम्हें भी बता दूंगा
तब तक इस बेहूदा
 सवाल का जवाब
नहीं दूंगा
10-11-2011
1766-34-11-11