Sunday, April 8, 2012

"निरंतर" की कलम से.....: हास्य कविता,-बगैर जूते खाए,साबुत घर लौट आए हो

"निरंतर" की कलम से.....: हास्य कविता,-बगैर जूते खाए,साबुत घर लौट आए हो: पचास की उम्र थी कपड़ों पर इत्र बालों में खिजाब लगा कर हाथ में गुलाब का फूल आँखों पे नज़र का मोटा चश्मा लगाए बन ठन कर , मुस्काराते हुए बहुत उम्...

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