Tuesday, December 20, 2011

हँसमुखजी की बन्दर से नौक झोंक (हास्य कविता)


हँसमुखजी को
मूंगफली और अमरुद बहुत
पसंद थे
सर्दी के दिन थे
अमरुद ,मूंगफली खाने
धूप सेकने बालकनी में
बैठे ही थे 
सामने पेड़ पर बैठे बन्दर ने
देख लिया
उसका भी मन
अमरुद ,मूंगफली खाने के लिए
मचलने लगा
फ़ौरन उछल कर बालकनी में
आ धमका
हँसमुखजी से अमरुद मूंगफली
मांगने लगा
हँसमुखजी ने उसे दुत्कार कर
भगा दिया
बन्दर को क्रोध आया 
मौक़ा ताड़ कर
मूंगफली की थैली लेकर
भाग कर पेड़ पर चढ़ कर
हँसमुखजी को
किलकारियों से चिढाने लगा
हँसमुखजी से
बन्दर का दुस्साहस बर्दाश्त
नहीं हुआ
गुस्से में ,मारने के लिए
अमरुद उठा कर बन्दर पर
फैंक दिया
बन्दर ने अमरुद कैच कर लिया
फिर हँसते हुए कहने लगा
हँसमुखजी
अमरुद तो पहले भी ले
सकता था ,
पर एक हाथ में अमरुद
दूसरे में मूंगफली की थैली लेकर
पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था
मुझे पता है
आप को छेड़ने से
आप पूरी तरह छिढ़ जाओगे
बिना सोचे समझे अमरुद भी
फैंक दोगे
अब मैं अमरुद मूंगफली
खाऊंगा
आप को चिढाऊंगा
आप देखते रहना
आइन्दा से
अकेले मज़े मत 
उड़ाया करो
मिल बाँट कर 
खाया करो
20-12-2011
1873-41-12

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