Sunday, December 11, 2011

जायदाद का आधा मुझे दे दो, नहीं तो हाथ पैर तुडवा लो(हास्य कविता)


पत्नी ने पती को
सोते से उठाया
पती क्रोध से
आग बबूला हो कर
दहाड़ा 
कैसी जाहिल पत्नी हो
मेरा सुन्दर सपना
तोड़ दिया 
एक अप्सरा के संग
घूम रहा था
हसरतों का मंज़र
अधूरा रह गया
पत्नी ने धारा चंडी
का रूप
भभक कर बोली
क्या समझते हो तुम?
निरंतर सताते हो तुम
तुम्हारा
सपना टूट गया होगा
मेरा तो पूरा हो गया
पुराना प्रेमी लौट आया
साथ में तलाक के
कागज़ और चार गुंडों को
भी लाया
या तो कागजों पर
दस्तखत कर दो
जायदाद का आधा
मुझे दे दो
नहीं तो हाथ पैर
तुडवा लो
दहेज़ का मुकदमा भी
भुगत लो
सुन पत्नी की बात,
पति खुशी से उछलने लगा  
फ़ौरन बोला
तुमसे पीछा छुडाने का
मौक़ा अच्छा है
आधी जायदाद और मुक्ति ?
सौदा सस्ता है.
11-12-2011
1853-21-12

1 comment:

  1. आगे का दृश्य शायद यह भी हो सकती है :

    सुन पत्नी की बात,
    पति जोर से हँसता है
    आधी जायदाद और मुक्ति ?
    सौदा सस्ता है.

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