कुछ
उनके हुस्न ने लूटा
कुछ आदत ही खराब थी
नज़र हर चेहरे पर,टिकती थी
गौर से देखती थी
उम्मीद से निहारती थी
निरंतर चाहत ऐसे ही बढ़ती थी
कोशिश उसे पाने की
जोर से होती थी
कामयाब अब तक नहीं हुए
हताश हम भी नहीं हुए
जोर अजमाइश चालू है
अब यही सोच रहा हूँ
इस बार
गेंद किस पाले में डालूँ
20-10-2010
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