Monday, September 19, 2011

कवी हँसमुखजी के घर में ,घुस आये दो चोर (हास्य कविता)

कवी हँसमुखजी के
घर में
घुस आये दो चोर
दरवाज़ा बंद कर दिया
और मचा दिया शोर
हँसमुखजी नींद से उठ गए
चोर सामने आ गए
पिस्तोल दिखा कर बोले
अब माल बाहर निकालों
हँसमुख जी मुस्काराए
फिर खुशी से बोले
माल तो ले लेना
पर मेरी कुछ कवितायें भी
सुन लेना
चोरों ने हाँ में गर्दन
हिलायी
हँसमुखजी ने कविता
सुनायी
चोरों ने सुध बुध खोयी
बेहोश हो कर गिरते ही
हँसमुखजी ने चोरों को
रस्से से बाँध दिया
थानेदार को फ़ोन दिया
थानेदार आया
आश्चर्य में डूब गया
हँसमुखजी से पूंछने लगा
एक कवी ने कैसे ?
दो चोरों को बाँध दिया 
हँसमुखजी ने उसे भी
अपनी कविताएँ सुनायी
उसने भी सुध बुध खोयी 
हँसमुखजी ने
चोरों के साथ
थानेदार को भी बाँध दिया
अगले दिन अखबार में
खबर छपी
एक कवी ने
कविताओं के दम पर
तीन चोरों को पकड़ा
आज कल जिस शहर में
चोरियां बढ़ती हैं
हँसमुख जी की कवितायें
बहुत बिकती हैं
20-09-2011
1531-102-09-11

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