हंसमुखजी
कभी जवान थे
कद काठी के पूरे
जोश से भरे
दिमाग आसमान में
अरमान पंछी से उड़ते
निरंतर नज़रों से नज़रें
लड़ाते
अपने को मजनूँ का
बाप समझते
हर मोहतरमा को
अपना समझते
सपने में लैला देखते
मुस्करा कर न्योता देते
ज़िन्दगी साथ बिताने का
वादा करते
कुछ वक़्त में किनारा
करते
लोग अपनी किस्मत
को रोते
हज़ारों बद्दुआ देते
अब बूढा गए
काले बाल सफ़ेद हुए
गाल पिचक गए
नज़रों से मंद हुए
अरमान टूट गए
कुंवारे रह गए
हर मोहतरमा में
बहन बेटी देखने
लगे
निरंतर सुहाग की
दुआ देने लगे
दिलों को तोड़ने पर
अफ़सोस करते
मन ही मन खुदा से
माफी मांगते
बुढापे के कहर से
खैर मांगते
08-01-2011
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