Thursday, September 8, 2011

हँसमुखजी का बीबी से छत्तीस का आंकड़ा था (हास्य कविता)

बेचारे हँसमुखजी का
बीबी से छत्तीस का
आंकड़ा था
घर के सारे काम करते
फिर भी निरंतर
डांट खाते
पती- पत्नी कम
दुश्मन ज्यादा दिखते थे
बात कम करते
आग ज्यादा उगलते
छोटी सी बात का
बतंगड़ बनाते
हर वक़्त लड़ने का
बहाना ढूंढते
एक दिन प्याज काट कर
जैसे ही कमरे में पहुंचे
पलंग पर महारानी सी
लेटी हुयी पत्नी  ने
हँसमुख जी की आँखों से
आँसू निकलते देख
मोहब्बत का
पुरजोर अंदाज़ में
परिचय दिया
चिढ़ते हुए वार किया
क्या आफत आ गयी
जो इस तरह बाल्टी भर
आँसूं बहा रहे हो
हँसमुखजी ने
खीजते हुए जवाब दिया
आँसूं नहीं बहा रहा
मुँह धो रहा हूँ
पत्नी ने पलट कर
हमला किया
खडूस मुँह को धोने में
इतना पानी तो बर्बाद
मत करो
तुम्हारे जैसों को
डूबने के लिए चुल्लू भर
पानी बहुत होता है
तो मुँह धोने के लिए
इतने पानी की क्या
ज़रुरत है
हँसमुख जी का पारा
चढ़ गया
जवाबी हमले में
मोटी पत्नी को धरती का
बोझ बता दिया
पत्नी कहाँ कम पड़ती थी
उसने हँसमुख जी को
उठाकर धोबी पाट दिया
पीट पीट कर बुरा
हाल कर दिया
प्याज के आँसूं
महीनों के आँसूं बन गए
अब आँसूं आते भी हैं
तो छुप जाते हैं
बंद नहीं होते तब तक
सूरत नहीं दिखाते हैं
08-09-2011
1467-39-09-11

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