Wednesday, September 7, 2011

हर बार चोट खाता हूँ,फिर भी नेताओं के सुधरने की,उम्मीद करता हूँ

26-01-2011
नेताजी
क्यों कुर्सी को
अंतिम पड़ाव समझते
उस से भी आगे कुछ है
क्यूं भूलते
ऊपर भी जाना है
जवाब उस को भी देना है
सज़ा कर्मों की पाना है
अब तो जाग जाओ
धरती पर ही सुधार
जाओ
जनता से किए
वादों को निभाओ
उम्मीद कम है
बात मेरी मानोगे
या हमेशा की तरह
एक कान से सुन
दूसरे से निकालोगे
निरंतर असत्य की
सीढ़ी से
कुर्सी तक पहुंचे हो
अब उसे  कैसे छोड़ोगे
मैं मूर्ख हूँ,भूल जाता हूँ 
बार बार दीवार से
सर  मारता हूँ
हर बार चोट खाता हूँ 
फिर भी  नेताओं के
सुधरने की उम्मीद
करता हूँ
26-01-2011

No comments:

Post a Comment