हालात
को देख लगता
आदमी जन्नत में रहता
तो भी ना बदलता
सरहदें वहाँ भी खींचता
ना सीधा बोलता
ना सीधा चलता
निरंतर नफरत से जीता
बातों से आग लगाता
ना खुद चैन से रहता
ना रहने देता
खंजर हाथ में लिए
घूमता
शिकार रोज़ नया ढूंढता
वहाँ भी कोई नेता
बनता
नज़ारा ज़मीन का
ज़न्नत में दिखाता
बचा खुचा बर्बाद
करता
खुदा भी सर अपना
पकड़ता
25-01-2011
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