Wednesday, September 7, 2011

ज्यादा क्रोध ना करा करें,ये सलाह भी देता हूँ

छात्र
ट्रेन से कोलेज जा रहा था
दोस्त साथ नहीं थे,
इसलिए बोर हो रहा था
उसने हंसमुख जी को देखा,
मन का शैतान जागा
हंसमुख जी अखबार पढ़ रहे थे
उनका का ध्यान अपनी और खीचां
धीरे से पूंछा,
दो और दो पांच होते हैं?
वे बोले नहीं चार होते हैं
ज़रा ध्यान से सोचो पांच होते हैं
हंसमुख जी से रहा ना गया,झल्लाते हुए बोले
छात्र मालूम होते हो,इतना भी नहीं जानते हो
छात्र बोला,मुझे लिख कर दे दो
अगर मन नहीं हो,तो घर का पता दे दो
घर आकर लिखवा लूंगा
आप कह रहे थे,दो और दो चार होते हैं
हंसमुख जी को दाल में काला लगा
छात्र की नियत पर,शक होने लगा
वे बोले घर आये,तो बाहर फिकवा दूंगा
छात्र बोला,नाराज़ क्यों होते हो
मैं सब को बता दूंगा,आप निरंतर कह रहे थे
दो और दो चार होते हैं
हंसमुख जी आपा खो बैठे,क्रोध से बोले
मैं भी कह दूंगा,दो और दो पांच होते हैं
छात्र मुस्कराया,बोला नाराज ना हों
आप भी वो ही कह रहे है,
जो मैं कह रहा था
मन लगा रहा था,टाइम पास कर रहा था
कोलेज का स्टेशन आ गाया,
अब जाता हूँ
ज्यादा क्रोध ना करा करें,
ये सलाह देता हूँ
10-10-2010

No comments:

Post a Comment