Sunday, September 4, 2011

हंसमुखजी ४५ के थे,पत्नी सुख से वंचित थे

हंसमुखजी ४५ के थे

पत्नी सुख से वंचित थे
अरमान अधूरे थे
विवाह सम्मलेन की खबर सुनी
बांछें खिल गई
सावले रंग को मेकअप में,
भेंगी आँख को, काले चश्मे में
हाथ के दाद को दस्ताने पहनकर छुपाया
बाल कम थे,चाँद नज़र नहीं आए
इस लिए सैलून में सैट कराए
ज़रा लंगडाते थे
पता नहीं पड़े इसलिए
दोस्त के कंधे पर हाथ रख
बन ठन कर सम्मलेन में
पहुँच गए
इंतज़ार करने लगे
कोई उन्हें भी पसंद करेगा
विवाह की बात चलाएगा
शाम होते होते प्रस्ताव आया
नाम पता पुछवाया
फिर बात चीत का बुलावा आया
उनके मन में उबाल आया
बात बन जाएगी ख्याल आया
दिल बाग़ बाग़ हुआ
सामना कन्या के बाप से हुआ
फौरन एक सवाल आया
अब तक कुंवारा क्यूं रह गया?
हंसमुख जी ने तुतलाकर
धीरे धीरे हकलाकर, जवाब दिया
अब तक कोई प्रस्ताव
समझ नहीं आया
कन्या के बाप ने जवाब दिया
मुझे समझ आ गया
किस्मत के मारे हो,
सब से न्यारे हो
तुतलाते, हकलाते को
प्रस्ताव कौन देगा
हम ही बेवकूफ थे
जो पैकिंग देख कर
मोहित हो गए
माल का पता होता,
तो गलती नहीं करते
नहला धुला कर,  
ठोक बजा कर परखते
बोल,चाल,चेहरा,बाल
सब बारीकी से देखते
हकीकत जानते
हंसमुख जी का मुंह
उतर गया
दिल टूट गया
निरंतर ऐसा ही होता था
कभी गंजापन आड़े आता
कभी भेंगापन काम बिगाड़ता
अब भी हिम्मत नहीं हारी
दिल में आस बाकी है
एक और सम्मलेन की
खबर आयी है
अब उसकी तैय्यारी है
29-01-2011

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