Wednesday, September 28, 2011

हँसमुखजी के गाँव में नेताजी पधारे (हास्य कविता)

हँसमुखजी के
गाँव में नेताजी पधारे
साथ में थे लाव लश्कर सारे
ऊपर से नीचे तक
नेताजी थे गोल
दिखते थे तरबूज से  बेडोल
हँसमुखजी ने पहचान लिया
नेता नहीं था ये भोलू चोर 
उनसे से रहा ना गया
निकल पड़े मुंह से कुछ बोल
तुम नेता नहीं ,हो एक ढोल 
नेताजी भी अकड़ कर बोले
क्यों बोल रहे हो ऊंचे  बोल
चुप हो जाओ नहीं तो
खुल जायेगी तुम्हारी भी पोल
हँसमुख जी बिफर कर बोले
तुम क्या खोलोगे मेरी पोल
मैं बोलूंगा सच्चे बोल
हम तुम थे साथ जेल में बंद  
वहां भी मचाई थी तुमने पोल
जेलर की जेब काट कर
मचा दिया था शोर
मच गयी थी जेल में रेलम पेल 
जेल तोड़ कर भाग गए थे
नाम बदल कर,चुनाव लड़े
चोर से बन गए नेता अनमोल
बहुत दिन बाद पकड़ गए हो 
अब जाओगे फिर से जेल
जब डंडे पड़ेंगे होलसेल 
तरबूज से पिचक कर
हो जाओगे गोल बेर
संगीत बिना भी निरंतर
करोगे रौक एंड रोल 
28-09-2011
1578-149-,09-11

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