Monday, September 12, 2011

शिकारी खुद शिकार हो गए अपने ही जाल में फँस गए,{हास्य कविता,}


मशहूर नेताजी
सलाखों के पीछे पहुँच गए
शिकारी खुद शिकार हो गए
अपने ही जाल में फँस गए
लौमडीयों से मात खा गए
हर बात पर शेर कहते थे
खुद को सिंह कहते थे
पहले घर से निकाले गए
फिर दोस्त रुस्वां हो गए
शौक़ीन तबियत के थे
बॉलीवुड के आशिक थे
बातों के टेप आम थे
निरंतर आसमान पर थे
अब ज़मींदोज़ हो गए
सरकार बचाते,बचाते
खुद बेचारे हो गए
ना घर के रहे
ना घाट के रहे
आसमान से गिरे
खजूर में अटक गए
उनके किस्से अमर हो गए
चस्के ले ले कर सब सुन रहे
12-09-2011
1491-63-09-11
(हास्य व्यंग रचना है,व्यक्ति विशेष से ना जोडें ,
किसी के मान मर्दन या सम्मान को ठेस पहुंचे तो क्षमा प्रार्थी)

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