Sunday, September 4, 2011

हास्य कविता -मातमी कविता नहीं सुनाएं तो और क्या करें ?


एक  कविता प्रेमी
मशहूर घाघ नेता ने
हास्य कवी सम्मलेन का
आयोजन किया
नामी गिरामी हास्य
कवियों को बुलाया
भारी पारिश्रमिक का
वादा किया
कवियों का दिल बाग़
बाग़ हो गया
जोश खरोश से 
सम्मलेन शुरू हुआ
पहले कवी ने रोते रोते
मातमी कविता का
पाठ किया
दुसरे कवी ने भी
आंसू बहाते हुए
एक दर्द भरी कविता
प्रस्तुत करी
श्रोताओं को कुछ
समझ नहीं आ रहा था
हंसने की जगह 
रोना धोना क्यूं हो रहा था
जैसे ही तीसरे कवी ने
आंसू ढलकाते हुए
मार्मिक कविता सुनाना
प्रारम्भ किया
एक श्रोता से रहा नहीं गया
उठ कर इस का कारण पूछा
बहुत मान मुनव्वल के बाद
डरते,रोते कवी ने बताया
ना कवियों को
आने जाने का किराया मिला,
ना सुबह का नाश्ता
दोपहर का खाना मिला
कवियों को बन्दूक की नौक पर
नेताजी की पार्टी का
सदस्य बनना पडा
पार्टी हित में दस साल तक
मुफ्त में कविता सुनायेंगे
शपथ पत्र भी भरना पडा
जिस कवी ने विरोध किया
उसे पिटना पडा
दस की जगह पंद्रह वर्ष का
शपथ पत्र भरना पडा
और तो और पार्टी फंड में
पांच हज़ार का
चन्दा भी देना पडा
साथ ही नेताजी की
बेसुरी कर्ण फोडू आवाज़ में
बीस पच्चीस कविताओं
को भी सुनना पडा
अब अब तुम्ही बताओ
मातमी कविता नहीं सुनाएं
तो और क्या करें ?
04-09-2011
1442-17-09-11
   
     

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