Sunday, September 4, 2011

हँसमुखजी की आग उबलती जुबान (हास्य कविता )


हंसमुख जी दस साल से
अस्पताल में भर्ती थे
अपनी आग उगलती जुबान
टोकने और ठुकने की आदत से
ना मर पा रहे थे
ना जी पा रहे थे
टोकने और ठुकने की कहानी
स्कूल से शुरू हुयी
जब तल्लीनता से पढ़ा रहे
मास्टरजी को
हँसमुखजी ने टोक दिया
आप का पढ़ाया समझ नहीं आता
समय व्यर्थ होता है
कह कर उनका पारा चढ़ा दिया
मास्टरजी ने जवाब में
एक चमाट जमा दिया
आइन्दा चुपचाप पढने का
आदेश दिया
दूसरा हादसा कॉलेज में हुआ
जब सहपाठी कन्या को
ख़ूबसूरती के नाम पर
धब्बा करार दे दिया
कन्या ने
चप्पल से हँसमुखजी का
स्वागत किया
बाकी कन्याओं से
तिरस्कार करवाया
तीसरा हादसा
शादी के वक़्त हुआ
घोडी पर बैठ कर
घोडी की नस्ल पर
फिकरा कस दिया
उसे गधे की बहन कह दिया
घोडी को बर्दाश्त नहीं हुआ
उन्हें ज़मीन पर गिरा दिया
धूल चटा कर बदला लिया
शादी को अस्पताल में
संपन्न करवाया गया
चौथा हादसा
बाप बनने के समय आया
किसी ने कह दिया
लड़का या लडकी होना
भगवान् के हाथ होता है
जवाब में हँसमुखजी ने
सवाल खडा कर दिया
भगवान् के हाथ क्या
ख़ाक होता है
जैसा किस्मत में लिखा ,
वैसा होता है
भगवान् कुपित हो गए
हँसमुखजी एक साथ
पाँच बच्चों के बाप बन गए
पाँचवा हादसा
पिता की म्रत्यु के बाद हुआ
वसीयत का मसला कोर्ट में था
जज ने पूछ लिया
माँ बाप की अकेली संतान हो
उन्होंने जुबान से
आग उगलते हुए कह दिया
उनकी जानकारी में वो अकेले थे
और भाई बहन हो तो पता नहीं
जज साहब क्रोधित हो गए
फैसले में लिख गए
गुमशुदा भाई बहन की
जांच होनी चाहिए
जायदाद को खटाई में ड़ाल गए
छटा हादसा
दिल दहलाने वाला था
हँसमुख जी ने
यमराज से पंगा ले लिया
स्वर्ग जाओगे या नरक ?,
यमराज ने मरने से पहले पूछ लिया
हँसमुख जी ने आग उगली
नाटक मत करो
ऐसे पूछ रहे हो जैसे
मरने वाले की इच्छा से ही
भेजते हो
यमराज आग बबूला हो गए
उन्हें साथ ले जाने की जगह
अस्पताल में सड़ने के लिए
छोड़ गए
तब से अस्पताल में भरती हैं
गिन गिन कर दिन काट रहे हैं
ना मरते हैं,ना जीते हैं
अब भी डाक्टर और नर्स को
तीखी जुबान का
स्वाद देते रहते हैं
बदले में खुद भी गाली
खाते रहते हैं 01-08-2011
1280-02-08-11

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