Sunday, September 4, 2011

अप्रैल फूल (हास्य कविता)


हँसमुखजी को
बुक्का फाड़ कर रोते 
उनके  सामने खड़े
दुखीमुखजी को ठहाके
लगाते देख कर
राह गुजरते
परेशानी लाल से
रहा ना गया
हैरानी में
हँसमुखजी से इस
उलटफेर का कारण
पूछ लिया
हँसमुखजी बोले
दुखीमुख हंस कर
मुझे अप्रैल फूल
बना रहा था
मैं भी निरंतर रो कर
इसे अप्रैल फूल बना
रहा हूँ 
उनकी बात सुन कर
परेशानी लाल 
परेशान हो गया
हैरानी में कभी हंसने
कभी रोने लग गया
01-09-2011
1428-03-09-11

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