Sunday, September 4, 2011

हंसमुख जी को पालतू बकरी से प्रेम हो गया (हास्य कविता )

  हंसमुख जी को पालतू
बकरी से  प्रेम हो गया

बकरी को रोज़
अपने हाथों से नहलाते
बालों को शैम्पू करते
आँखों में काजल
होठों पर लिपस्टिक लगाते
उसे गहने पहनाते
पत्नी को बर्दाश्त नहीं हुआ
चिढ कर कहने लगी
कभी मेरा भी
इसके जैसा श्रृंगार करो
क्या मुझसे प्यार नहीं करते ?
हंसमुखजी मिमियाते हुए बोले
श्रृंगार तो कर सकता हूँ
पर मुझे पूरा यकीन है 
श्रृंगार के बाद  भी तुम
 जैसी हो उससे भी बदसूरत लगोगी
बकरी तो दूर की बात
किसी गाय  से कम नहीं दिखोगी
बकरी तो श्रृंगार के बाद
और सुन्दर दिखती है
मुझे उसमें किसी अभिनेत्री की
 झलक दिखती है
कुछ पल आँखों को
राहत मिल जाए
ऐसा काम कर दिया है 
मैंने बकरी का नाम भी बदल कर
तुम्हारे नाम पर रख दिया है
पत्नी भी कम नहीं थी
उसने गुलाम पर बेगम मारी 
खीज कर बोली
तुम भी किसी बकरे से
कम नहीं दिखते
मेरे सामने तो मिमियाते हो
बकरी के नखरे उठाते हो
जात वालों से प्रेम जताते हो
आज समझ आया
क्यों बकरी को इतना चाहते हो
आज से खाने में चारा मिलेगा
चरने  के लिए जंगल जाना पडेगा
घर लौट कर आये तो
खूंटे से बाँधना पडेगा 
02-09-2011
1433-08-09-11

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