Sunday, September 4, 2011

शायद महफ़िल में,ऐसा ही होता होगा

हंसमुख जी को,
ग़ज़ल सुनने का शौक लगा
मतलब समझते नहीं थे
पर शायरों को,
कैसे खुश रखना है,जानते थे
पहली बार महफ़िल में,ग़ज़ल सुन रहे थे
हर शेर पर दाद दे रहे थे
एक शायर,उनकी बीवी कैसे फौत हुई 
जरिये ग़ज़ल बता रहे थे
महफ़िल में सारे लोग,
गम में अश्क बहा रहे थे
हंसमुख जी दाद पर दाद दे रहे थे
शायर को गुस्सा आया ,
गुस्से में एक तमाचा उनके लगाया
हंसमुख जी फिर भी,निरंतर  दाद देते रहे
शायद महफ़िल में,ऐसा ही होता होगा
यह सोचते रहे,
तमाचे खाते रहे
04-10-2010

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