Sunday, September 4, 2011

मेरे सामने वाली खिड़की में, एक चाँद का टुकडा रहता है

मेरे
सामने वाली खिड़की में,
एक चाँद का टुकडा रहता है
औंधे मुंह धरती पर गिरा,
देखें तो  ऐसा लगता है,
चेहरा भी पथरीला,
दूज के चाँद सा अधूरा
चमकता श्याम वर्ण
दिन में रात का, आभास कराता है
वजन उस का,चाँद की किसी
चट्टान की याद दिलाता है
चाँद धरती से बहुत दूर है
फिर भी नज़र आता है
वो भी दूर से ही,पहचाना जाता है
निरंतर,जैसे चकोर ढूंढें चाँद को
वो भी चकोर ढूंढता है
चाँद शीतलता देता है,उसे भी देखते ही
हर आह भरने वाला,शीतल हो जाता है
मेरे सामने वाली खिड़की में,
एक चाँद का टुकडा रहता है
05-10-2010

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