Sunday, September 4, 2011

निरंतर एक खेल को देखने में. पांच दिन बर्बाद नहीं करूंगा

हंसमुख जी को क्रिकेट का शौक लगा
बच्चों के साथ टी वी पर मैच देख रहे थे
खेल में टॉस हुआ.
एक कप्तान ने सिक्का उछाला
फिर नीचे झुक कर  उठा लिया .
वे बोले उठाना ही था तो उछाला क्यूं था.
 सफ़ेद कपड़ों में अम्पायर अन्दर आये
उन से रहा ना गया बोले ,खेल में डाक्टरों क्या काम,
मुन्नू,हंसमुख जी की बात से परेशान हो रहा था,
बोला,अंकलजी डाक्टर नहीं अंपायर हैं
कौन आऊट,कौन नोट आऊट है,
 बताते हैं,खेल को ये ही चलाते हैं .
खेल शुरू हुया,ओपनिंग बैट्समेन मैदान पर आये
हैल्मट और पैड से लैस थे
मित्र फिर परेशान हुए,बोले क्रिकेट खेलेंगे या लड़ेंगे .
खेल शुरू  हुआ,कमेंटेटर ने कमेंट्री शुरू की
पहली गेंद ऑफ स्टंप के बाहर थी
हंसमुख जी बोले, बाहर कहाँ, मैदान के अन्दर ही थी .
अगली गेंद गली में गयी
वे अपने को रोक ना सके, फौरन बोले
इतना बड़ा मैदान है. फिर गली में फेंकने की क्या जरूरत थी .
खेल चलता रहा, उनके   के सर के ऊपर से निकलता रहा
इस बार हद हो गयी,सारे खिलाड़ी चिल्लाये आऊट
 अम्पायर ने कहा नौट आऊट
वो गुस्से में बोले,जब ग्यारह आऊट कह रहे हैं
ये अम्पायर क्यों अड़ रहे हैं
 आवाज़ आयी,गेंद कवर में गयी
वे फिर  बौखलाए, जोर से चिल्लाये
ये मैदान क्या कम हैं जो अब,कब्रिस्तान में गेंद फेंक रहे हैं
गेंदबाज़ को गेंद पर थूंक लगाते,फिर पैंट से पोंछते देखा
तो संतुलन खो दिया बोले
अगर यही क्रिकेट है,तो मुझे नहीं देखना
समय बर्बाद नहीं करना है
 कुछ और देखूंगा
मन को बहलाने के कई और साधन हैं
समय कीमती होता है
निरंतर एक खेल को देखने में.
पांच दिन बर्बाद नहीं करूंगा
05-10-2010

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