हंसमुख जी
बड़े नेता थे,दो सीटों से
चुनाव लड़ रहे थे
मैंने उनसे पूँछा
क्यों देश का पैसा,बर्बाद कर रहे हो ?
दो सीटों से,चुनाव लड़ रहे हो
भोली भाली जनता का तो सोचो ?
मैंने उनसे पूँछा
क्यों देश का पैसा,बर्बाद कर रहे हो ?
दो सीटों से,चुनाव लड़ रहे हो
भोली भाली जनता का तो सोचो ?
जवाब में वे बोले
निरंतर,जनता का ही सोचता हूँ
भला उसका करता हूँ
इसी लिए दो सीटों से,चुनाव लड़ता हूँ
निरंतर,जनता का ही सोचता हूँ
भला उसका करता हूँ
इसी लिए दो सीटों से,चुनाव लड़ता हूँ
हर हाल में,चुनाव जीतना है
एक सीट को रखना,दूसरी को छोड़ना है
मेरा पैसा ज्यादा खर्च होगा
जनता का भी भला होगा
छः महीने सीट खाली रहेगी
एक सीट को रखना,दूसरी को छोड़ना है
मेरा पैसा ज्यादा खर्च होगा
जनता का भी भला होगा
छः महीने सीट खाली रहेगी
जनता भी चैन से रहेगी
हर ठेका मेरा होता है
हर थाणे में हिस्सा होता है
ट्रांसफर के पैसे लगते हैं
जनता के छः महीने,सब बचेंगे
हर ठेका मेरा होता है
हर थाणे में हिस्सा होता है
ट्रांसफर के पैसे लगते हैं
जनता के छः महीने,सब बचेंगे
ना स्वागत समारोह होंगे
ना मेरे लोग दंगा करेंगे
कम से कम छः महीने तो
लोग चैन से रहेंगे
13-10-2010
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